माँ
माँ
जीवन की अरुणाई माँ है ,
भीनी सी अमराई माँ है ,
त्याग तपस्या की मूरत सी
भावों की गहरायी माँ है |
ग्यान मयी गीता गंगा है ,
जीवन धन माँ आनन्दा है ,
नरम सुखद सी हरी दूब वह
थकन मिटादे सुखकन्दा है |
माँ जीवन की एक क्यारी है ,
सदा महकती की फुलवारी है ,
घने अभावों की दुनियाँ में ,
सुख दुख की ज़िम्मेदारी है |
नहीं कोई माँ के जैसा है ,
हर उपमा बेइमानी सी है ,
दुनियाँ की सारी दौलत भी ,
माँ के आगे पानी सी है |
माँ फिर आज तिरस्कृत क्यूँ है
इतनी आज उपेक्षित क्यूँ है |
मंजूषा भर गयी दर्द से ,
संतति क्यूँ बौरायी सी है |
मंजूषा श्रीवास्ततव