माँ
तिथि-23/11/18
वार-शुक्रवार
विधा-गीत
***माँ**
धन्य हुई माँ तनया तेरी ,
चुनरी तेरी जब लहराई…!!!
छुप जाने को आतुर मन था
जब हैवानों ने जकड़ा था ।
देख कहाँ पाई थी बाधा
कितने हाथों ने पकड़ा था
विरक्ति ने भावों को मोड़ा
अंतर्मन में व्यथा समाई।।
धन्य हुई माँ तनया तेरी
चुनरी तेरी जब लहराई…..!!!
बाधित पग उठते फिर कैसे
जब रक्त धरा ने सोखा था
हृदय विदारक दृश्य सभा का
यह अपनों का ही धोखा था
सत्य-असत्य का पाढ़ पढ़ाकर
रिसते घावों को सहलाई ।।
धन्य हुई माँ तनया तेरी
चुनरी तेरी जब लहराई…..!!!
मर्म प्रेम का जब मैं समझी
तेरी मधुर छवि निराली थी
छोड़ चली कर अंबर सूना
बिन आँसू ऑंखें ख़ाली थी
छोर पकड़ आँचल वह सुंदर
भूल कहाँ वो पल मैं पाई ।।।
धन्य हुई माँ तनया तेरी
चुनरी तेरी जब लहराई ..!!!
अर्चना लाल
जमशेदपुर झारखण्ड