माँ
हे माँ —
प्यारी माँ!
सोचता हूँ, कविता लिखूँ?
किस्सा-कहानी लिखूँ ?
शेष रह जाएगा फिर भी कुछ न कुछ
लिखता रहूँगा, चाहे सारा जीवन लिखूँ!
शब्दों के सिंधु से मोती ढूँढ लाऊँ—
अंबर के अनंत तारे तोड़ लाऊँ —-
गाथा तुम्हारी,हे जननी!इन करों से लिख न पाऊँगा!
ऋणी हूँ!सदा ऋणी ही रहूँगा
हे प्रसू!तेरा ही बेटा बनकर आऊँगा सदा—
पूजा करूँ,हे अंबा ;कोटि कोटि अम्बिका तेरी आरती करूँ ।
फिर भी,कुछ न कुछ शेष रह जाएगा
जय माँ! हे माँ! प्यारी माँ!
मुकेश कुमार बड़गैयाँ”कृष्णधर द्विवेदी”
M ukesh.bdagaiyan30@gmail.com