माँ
. माँ
‘माँ ‘शब्द में करें बसेरा , सब ब्रह्मा , विष्णु और महेश ।
माँ कहने से मुँह भर जाता ,मिट जाते दिल के सब द्वेष।।
ममता, करुणा और प्रेम ,दया, सहानुभूति की खान है माँ ।
बच्चों को है दिल से प्यारी , रूप अलग ,एक जान है माँ।।
पेट में रखा नो महीनों तक , रही होगी कितनी परेशान ।
दूध पिलाकर अपने तन से ,भूख से मेरी बचायी जान ।।
करअपने हाथों पालन,पोषण,भर दियाअमूल्य नैतिक ज्ञान।
दुख,दर्द सहे चुपचाप सभी,न छिपी कभी मुख से मुस्कान।।
भूल सकूँ नहीं माँ वह लोरी, खुद जगी पर मुझे सुलाया ।
मिली न फुर्सत तुझे कभी , पर हर रोज मुझे नहलाया।।
मैं था जिद्दी और शरारती ,माँ रो-रोकर तुझे खूब रुलाया।
लातें मारकर , गीला करके , मैंने रात भर तुझे जगाया ।।
हाथ सदा रहा सिर पर तेरा ,माँ दुआ सदा रही मेरे साथ ।
संभल गया उस दिन से मैं ,पकड़ी उँगली जब तेरी हाथ।।
अपनी तरफ से कसर न रखी ,जितना माँ तुमसे हो पाया ।
एक अज्ञानी को गढ़ तूने ,दिया ज्ञान सभ्य इंसान बनाया ।।
न इतनी शक्ति मेरी कलम में, जो करदे माँ तेरा व्याख्यान ।
सौ जन्मों तक करके सेवा ,न चुका सकूँ माँ तेरा अहसान ।।
नफे सिंह योगी मालड़ा
जिला महेंद्रगढ़ ,हरियाणा
स्वरचित रचना