माँ
माँ
शुक्र है खुदा का माँ मिली
मिलती ना माँ तो
दुनियां में आता कैसे
इतनी खूबसूरत दुनिया है
लुत्फ इसका उठाता कैसे
साथ नहीं है आज
उनकी याद आती है
उनकी मेहरबानियां
अन्दर तक हर्षाती है
भूखे रहकर भी
मुझको पालती थी
रात रात भर मेरे लिए
खुशी से जागती थी
क्यो ना दिल से शुक्र मनाऊँ
ऐसे माँ का
जिन्होंने ज़िन्दगी दी
और जीने का तजुर्बा भी
©पूरनभंडारी सहारनपुरी
मैं, (पूरन भंडारी ), स्वप्रमाणित करता हूँ कि प्रविष्टि में भेजी रचनाये नितांत मौलिक हैं, तथा मैं इस काव्य रचना को प्रकाशित करने की अनुमति प्रदान करता हूँ, रचना के प्रकाशन से यदि कापीराईट का उल्लंघन होता है तो उसकी पूरी जिम्मेदारी मेरी होगी ।
पूरन भंडारी सहारनपुरी
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