माँ
माँ
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माँ कहती रहती है जिसको फूल फूल बस फूल
पंख निकल आये हैं जबसे बना हुआ है शूल
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पेट काटकर जिसको पाला
जिसकी बाहें माँ की माला
कितना बदल गया है देखो
माँ पर प्यार लुटाने वाला
माँ के सारे उपकारों को समझे आज फिजूल-
पंख निकल आये हैं जबसे बना हुआ है शूल
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आलीशान महल है भाई
घरवाले भी झूम रहे हैं
धुले-धुलाये फर्नीचर भी
इक दूजे को चूम रहे हैं
लेकिन माँ के मुखड़े पर तो जमी हुई है धूल-
पंख निकल आये हैं जबसे बना हुआ है शूल
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अंत समय में सपने सारे
तिल-तिल पल-पल टूट रहे हैं
माँ के मधुर हृदय से लेकिन
शब्द दुआ के फूट रहे हैं
माँ तो देना जाने है बस करती कहाँ वसूल-
पंख निकल आये हैं जबसे बना हुआ है शूल
– आकाश महेशपुरी
कुशीनगर (उत्तर प्रदेश)
मो- 9919080399
(“माँ” – काव्य प्रतियोगिता)