माँ ! हम यह कहाँ आ गए ? ( हथिनी के शिशु का अपनी माँ से प्रश्न )
माँ ! हम यह कहाँ आ गए ?
यहाँ तो बादल ही बादल छाए ।
माँ ! तू तो भोजन की तलाश में निकली थी ,
फिर हम इधर कैसे आ गए ?
हम दोनों भूखे थे ,हमें एक फल मिला तो था ,
क्या हुआ उसका माँ ? और यह जख्म तुमने कहाँ से पाये ?
याद है मुझे ,तुमने मुझसे क्षमा मांगी थी ।
किस लिए और क्यों माँ ! नैन तेरे भर आए ?
मैं समझ नहीं पा रहा हूँ माँ अब तक ,
अचानक एक धमाका हुआ और हम यहाँ चले आए ।
बताओ माँ ! कुछ तो बताओ ! यह हम कहाँ आ गए ?
ना तो ज़मीन ,ना आसमान , और न ही कोई इंसान ।
फिर आखिर हम कहाँ आ गए?
अबोध शिशु के प्रश्नो पर वो मासूम बेजुबान बस इतना बोली ,
”इंसान का नाम मत ले !नफरत है मुझे इस नाम से !
यहाँ देवता बसते हैं हम धरती से स्वर्ग में आ गए ।
वो धरती अब हमारी न रही , इसीलिए मेरे लाल !
हम अपने परम पिता परमात्मा के पास आ गए। ”