माँ, सीखा दो।
ऊँगली पकड़कर चलना सिखा दो,
कुछ तो हमें भी संभालना सीखा दो।
जमाने की राहें बहुत ही कठिन हैं,
उन पथरीले रास्तों को भी दिखा दो।
प्रीत की छाया हो ममता की काया,
उठा के गले से तो हमको लगा लो।
किया है उपकार तूने जन्म देकर,
न मारे कोई ये तो सबको बता दो।
माँ तू तो है एक सृष्टि रचयिता,
हमें भी धरा को गढ़ना सिखा दो।
मर्यादा मर्दक का मर्दन करे है तू,
ऐसी प्रखर तीर हमें भी थमा दो।
सुना है हृदय तेरा सागर का पानी,
हमें शांत जीवन में रहना सिखा दो।
तू ममता की मूरत है सुंदर काया,
प्रकृति का रूप हो अपना दिखा दो।
अनेकों भूमिका निभाती धरा पर,
एक सच्ची नायिका हमें भी बना दो।
प्रीत की छाया हो ममता की काया,
उठा के गले से अब हमको लगा लो।
★★★★★★★★★★★
अशोक शर्मा,कुशीनगर, उ.प्र.
★★★★★★★★★★★