माँ साथ रहे… माँ जितनी
ये न पूछ के कहाँ -कहाँ होती है
माँ भरोसा है हर जगह होती है
जिसे पाकर जरूरतें मुक़्क़मल होती हैं,
माँ जिंदगी की ऐसी तनख्वा होती है
माँ सब्र है…… इम्तेहान है
ममता की अपरिमेय दास्तान है
महान भी महनीय जिससे
माँ… देवी का व्याख्यान है
माँ उलझी हुई लता जैसी
माँ स्वर्ग के पता जैसी
माँ को समझना आसान है
माँ है तो बस ममता जैसी
माँ घाव पर इक चीर जैसी
ममता की असल तस्वीर जैसी
जो लिख दे स्वर्ण अक्षरों में भाग्य
माँ तकदीर के तकदीर जैसी
माँ सम्मान की शोभा बढाती
अपने त्याग को छोटा बताती
ज्ञानस्थली है संस्कार की..
विहीनता पर पोछा लगाती
है कहाँ मुझमे समर्थ माँ
दुनिया में भटका व्यर्थ माँ
तुझको समझना था मुझे
दुनिया को समझा अर्थ माँ
दुनिया देखा सबको समझा
खामखा का था उसमे उलझा
तुम ही तुम हो अब समय से
तुमने दिया दुनिया को झुठला
सीख तुम्हारी याद रहेगी
मन्नत तुम्हारी आबाद रहेगी
मेरे मन्नत में तुम ही होगी
तुम साथ रहो फ़रियाद रहेगी
विधाता से है इच्छा इतनी
माँ साथ रहे…. माँ जितनी
मुकम्मल करना है काम तुम्हारा
माँ देती है दुआ कितनी….
माँ तुमको लिखने में जीवन बीते
कलम कितना खाका खींचे
जिस जन्नत की जिक्र सभी करते
वो है तेरे कदमों के नीचे
अब मेरे भाव का अर्पण तुमको
है जीवन का समर्पण तुमको
तुम देव दरस को आतुर थी ना ?????
लो देता हूँ दर्पण तुमको
-सिद्धार्थ गोरखपुरी