*माँ सरस्वती जी*
माँ सरस्वती जी
कृति रूप बनी हर भाव तुम्हीं।
प्रिय सुन्दर स्नेहिल छांव तुम्हीं।।
तुम अक्षर शब्द स्वभाव बनी।
प्रिय अंतिम भाव पड़ाव बनी।
तुमसे जग उत्तम लगता है।
दर्शनीय भावन उगता है।।
तुम विराट ब्रह्मा अविनाशी।
अवधपुरी मथुरा शिव काशी।।
वर दे वर दे मातृ शारदे।
सारा जग खुशियों से भर दे।।
बढ़ती शंका दूर करो माँ।
लंका चकनाचूर करो माँ।।