माँ मेरे साथ मेरा साया बना फिरती है
मेरी माँ मेरे साथ मेरा साया बना फिरती है,
दूर होता हूँ माँ से फिर भी
अपना हाथ आशीर्वाद सदा
मेरे पर बनाए रखती है
आँखों से ओझल जो हो जाऊं तो
मेरा नाम ही लबों पर रखती है
अपनी हर ख़ुशी मुझ पर ही न्यौछावर करती है
मेरी तस्वीर जिगर से लगाए रखती है
मेरे ख़ातिर नाज़ाने कितने
दर्द से गुजरती है
माँ है मेरे लिए हँसते हँसते
कांटो पर भी चल पड़ती है
माँ है बिन बोले भी सब कुछ समझती है
एक भी सिकन चेहरे पर
दर्द की नहीं उभरती है
मेरी ख़ुशी के लिए नाजने
कितनी बार अंदर ही अंदर मरती है
मेरे लिए भी जीने की एक आस
अपने भीतर रखती है
माँ है कब अपने बच्चों को बोझ समझती है
चाहे कितने भी बढ़े हो जाए
फिर भी छोटा समझती है
हर गलती पर कान पकड़
थोड़ा शब्दों में दम भरती है
सही मार्ग पर अग्रसर करती है
माँ है कब अपने बच्चों का गलत राह में
चलना पसन्द करती है
माँ ही है जो धरा को जन्नत में बदलती है
माँ ही है जो इस धरा में ख़ुदा सी लगती है