~~माँ मेरी ऊंचे भवन वाली ~~
पहचान मेरी “” माँ” तुझी से है
यह मेरी शान “” माँ”” तूझी से है
मेरी हस्ती तो कुछ भी नहीं !!
यहाँ की हर बात “” माँ”” तूझी से है !!
तू न होती तो कैसी होती कायनात यहाँ
तेरे दर्शन न होते तो कैसी होती भक्ति यहाँ
भटकता रहता “भक्त” तेरे दर्शन को
तू है जभी तो “” माँ”” हर बात है यहाँ !!
यूं ही नहीं कहते तू मुरादें पूरी करती है
यूं ही नहीं तू खाली झोलियन भरती है
न जाने कितनो ने सर झुकाया है तेरे दर पे
तभी तो आज रोशन चाँद तारे हैं यहाँ !!
किस्मत वाले होते हैं, जिन को तेरा प्यार मिला
एक बार ही नहीं””माँ” उन को हर बार मिला
क्या लिखा है मेरी किस्मत में दर दर भटक रहा
“अजीत” एक बार मुझ को भी बुला ले न अपने दरबार वहां !!
देखा था तेरा भवन, पर पण्डितों ने रूकने न दिया
तेरा दीदार होने को था, झट से भगा दिया
शायद नहीं था रूतबा मेरी पॉकेट के अंदर
तभी तो भटक रहा, आज तक लिए में सवाल यहाँ !!
देख “”माँ’ दर्शन देने हो तो दे जाना, खाली हाथ आया हूँ
लेकर अपनी भावना , और अपने भाव यही लेकर आया हूँ
दुनिया इस कलयुग की बिना लालच के नहीं चल पाती
में तो अपनी बगिया से तोड़ कर दो फूल तेरे लिए यहाँ यहाँ !!
अजीत कुमार तलवार
मेरठ