!! माँ- मदर डे पर विशेष !!
जिन की नहीं होती है , माँ
वो लोग परेशांन होते हैं
जिस के जीवन में विराजमान है , माँ
वो उस को अब बोझ समझते हैं !!
कल तक कर रही थी सब कुछ
वो बड़े ही सकून से तब सोते थे
जब बारी आयी माँ के सकूंन की
कहते हैं अब बड़ी खलल से होती है !!
बोझ सा लगने लगी है अब, माँ
जब से बहु के संग हसी ठिठोली होती है
उन दिनो को याद नहीं करता है
जब तेरी मुस्कराहट के लिए वो रोती थी !!
तेरे दर्द को देख सभी कुछ खोती थी
भूखी प्यासी रह तेरी हर आह पर खोती थी
आज वो नजरों में तुझ को खटकने लगी
याद रखना दोस्त “माँ” तो बस माँ ही होती है !!
कर्ज तो उस का आज तक न कोई चुका पाया
चाहे जितना धन दौलत में गोते लगा लेना
तेरी झलक पाने को वो ममतामयी मूरत
रोज सुबक सुबक पर पल्लू से अपने रोती है !!
अजीत कुमार तलवार
मेरठ