माँ भारती का दर्द
रे चन्द्रशेखर तेरी माँ भारती कुण म्ह पड़ी टसकै स।
खुल कै रो बी ना सकदी वा भीतर ऐ भीतर सुबकै स।।
हर रोज करै घा माँ की छाती म्ह या किसी औलाद होरी स।
दुःख दरदां म्ह जकड़ी काया बस नाम की आज़ाद होरी स।
अमीर गरीब की खाई घणी बढ़गी न्यू जिंदगी बर्बाद होरी स।
भाई के हक प भाई गेरे डाका न्यू छाती माँ की चसकै स।।
कुछ भाईयाँ कै धन के घाटे नहीं दूसरे भाई बणै भिखारी सं।
भूखे पेट, नंगे बदन रह कै वे बेचारे सहवैं दुःख घणे भारी सं।
सर प छात कोणी सारां कै, कईयां कै बहोत महल अटारी सं।
ढ़ंग का इलाज मिलदा कोणी गरीबाँ नै आत्मा सिसकै स।।
माँ बाहणा की इज्जत लूट लेवैं दिन धौली न्यू पाटै छाती स।
इज्जत कै लुटेरां का बचा करण नै, यू खड़ा पावै हिमाती स।
छाती छलनी होगी ठग, चोर, जार आड़े बणा देखा पंचाती स।
खूनी, लूटरे राजनीति म्ह आग्ये इनकै आगै कोण चुसकै स।।
भाईचारे का करकै रोज खून आड़े मेरा तिलक करण लागै।
फैला कै भरष्टाचार रिश्वत ले ले आपणी गोझ ये भरण लागै।
संस्कृति, संस्कार, रिवाजां नै फैशन के पायां म्ह धरण लागै।
लिख दे स बात मर्म की सुलक्षणा माँ खातर दिल धड़कै स।।
©® डॉ सुलक्षणा अहलावत