”माँ बिन शाम गुजर जाती है”
कविता-13
सवेरे कि शुरुआत तुम्हें देख कर होती ,
और अब तुम्हारी तस्वीर देखें बिन शाम गुजर जाती है ।
हर रोज़ की शुरुआत तुम्हारी आवाज़ सुन कर होती ,
और अब तुमसे बात किये बिन शाम गुजर जाती हैं ।
तुम्हारी थाली कि रोटी खाता तो मन को संतुष्टि होती ,
और अब कितनी शाम बिन खाए गुजर जाती हैं ।
नहा कर आने से मेरे सिर को अपने पल्लू से पोछ्ती ,
और आज ज्यादातर शाम बिन नहाये गुजर जाती है ।
जब कभी मैं होता बीमार मां होती तो
माथे मे कोई शिकन ना होती ,
और आज तेरी यादों मे ही शाम गुजर जाती है ।
माँ तुम अब भी वो सब करती हो जब साथ मेरे होती ,
लेकिन तुम्हारे साथ रहने के लिए कितनी ही
शाम अकेले गुजर जाती है ।
माँ तुम्हारे पास होने पर मेरे पल -पल की तुम्हें खबर होती ,
और आज कितनी शाम मेरा हाल जानें बगैर गुजर जाती हैं।