माँ बाप खजाना जीवन का
माँ तेरे बिन अब कौन पुकारे अपना सा।
माँ तेरे बिन दुनियाँ में छूट गया सब सपना सा।
माँ की लोरी से बढ़कर कोई गान नही है दुनियाँ में।
माँ की बोली से बढ़कर कोई शब्द नही है कानों में।
चेहरा देख जो पढ़ लेती थी ,दिल के भावों को।
समझ नही सकती, ये दुनियाँ उन जज्बातों को।
हाथ फेर कर, सर पर वो तकलीफ़ों को हर लेती थी।
दवा से पहले काली नजर उतारा करती थी ।
पापा का क्या गुणगान करू मैं,
जिव्हा इस लायक नही है।
कर्ज उतार दे उन के ऋण का
ऐसा कोई सामर्थ्य वान नही है।
कौन कहता है कमियाँ पूरी हो जाती है।
वक्त है साहब, हर घावों को भर देता है।
पर आज ये बातें झूठी लगती है,रह जाती
जो टिस हिया में मात पिता को खोने से।
अभिमन्यु का सा घांव है ये जो
भर नही सकता इस जीवन में।
दुनियाँ की दौलत और शोहरत
सब फीकी है मातृ पिता के अभाव में।
कहते है सब एक शब्द अनाथ ,जो लगता
जैसे कानों में गर्म शीशा उड़ेल दिया।
इस दिल के दर्द का कोई ईलाज नही,
माँ बाप से बढ़कर इस धरती पर कोई और नही।
संध्या चतुर्वेदी
मथुरा ,उप