पिता
********पिता ********
वह फुलवारी का नायक, अडिग खड़ा उपवन में जो
मुख, सूर्य सा तेज लिए, बगिया का पालक है वो
जिसके मुख पर समय चिन्ह, चमकते हैं मणियों से
संघर्ष किया जिसने नितदिन,समय की चलती घड़ियों से
सबको बिछौने पे सुला,जो स्वयं धरा पर सोता है
वह अदम्य साहसी बलिदानी पुरुष, पिता होता है
जिसके मन में अभिमान नहीं, बस प्रेमत्व का भाव है
परिश्रम का चापू लिए खेता, जो परिवार की नाव है
कर्त्तव्य निष्ठ है वह,सदृश जो गीता और रामायण है
आदर्शों की मूरत है वह, वह सदैव ही धर्मपरायण है
नवोद भिद् कोपलों को जो स्वेदजल से सींचता है
वह अदम्य साहसी बलिदानी पुरुष पिता होता है
फल चाहता कभी नहीं, बस निस्वार्थ सींचता उपवन को
पौधे को वृक्ष बनाने की चाह में, वार देता जो जीवन को
नित्य सघन परिश्रम कर, भोजन देता रिक्त उदर को
साधारण है दिखने में, पर होता अत्यंत विशिष्ठ है वो
प्रेम के धागे में जो सदैव संबंधो के मोती पिरोता है
वह अदम्य साहसी बलिदानी पुरुष पिता होता ह