माँ तेरे रूप अनेक
मांँ तेरे रूप है अनेक,
किस किसको मैं गिनवाऊंँ,
एक इच्छा तुमसी मैं बन जाऊंँ।
जन्म दात्री हो तुम मेरी,
पाल पोसकर बड़ा किया है,
मेरी हर इच्छा को पूर्ण तुमने किया है।
सबसे अच्छी सखी तुम मेरी,
जो ना कह पाई किसी से ,
उसकी राजदार भी तुम ही हो।
हर बार नया रुप तुम्हारा ,
मेरे सामने आ जाता है,
परिवार में सबसे ऊपर वह हो जाता है।
संस्कारों की तुम संस्कृति हो,
सुख दुख की तुम साथी हो,
सुघड़ गृहिणी सी तुम मुझको सब सिखाती हो।
अब कुछ पंक्तियां हर मांँ के लिए…
माँ किसी की भी हो,
वह तो बस माँ होती है,
बच्चों के दिल की राह होती है।
समर्पण की प्रतिमूरत,
स्नेह का अपार सागर,
ज्ञान का भंडार माँ होती है।
चाहे हो वह अनपढ़,
बच्चे का मन पढ़ लेती,
बिन माँगे वह सब दे देती है।
उसका कर्ज न चुका पाया कोई,
उसका वक्त न लौटा पाया कोई,
वह सब निस्वार्थ भाव करती है।
ग़लती चाहे कैसी भी हो,
माफ़ सदा वह कर देती है,
चाहे बाद में घुट-घुट कर रोती है।
न होने देती अपने दर्द का अहसास,
बच्चे खुश रहें करे प्रभु से यह आस,
बच्चों की खुशी रखती खुद पर विश्वास।
ऐसी ही होती है सबकी माँ,
डाँट लगाकर खुद रो देती माँ,
माफ़ी माँगो अंक भर लेती है माँ।
प्रभु की अद्भुत कृति है माँ,
परिवार का सशक्त सतम्भ है माँ,
जीवन का आधार आस और विश्वास है माँ।
नीरजा शर्मा