माँ : तेरी आंचल में…..!
” माँ…!
तेरी रचना का ही, मैं एक आकार हूँ…!
तेरी आंचल की…
अनुपम पुष्प-हार हूँ…!
अतुल्य तेरी ममता में ही पल्लवित…
मैं एक अलंकार हूँ…!
किसी कलाकार की…
उकेरी हुई अमूल्य उपहार हूँ…!
तेरी अक्षुण्ण गोंद में आकर…
मन पुलकित और तन चंचल हो जाती है…!
तेरी बाहों में लिपट…
सारा दुःख-दर्द पलभर में मिट जाती है..!
थपकी लगा जब लोरी-गीत कोई सुनाती है..
भूख-प्यास की बातें…
कब चम्पत हो जाती है, कुछ अनुमान नहीं…!
शायद ऐसी कला-हुनर…
किसी वैद्य-हकीम के पास नहीं…!
है एक अरमान ओ माँ मेरी…
तेरी आंचल में, यूं ही सदा…
मैं चहकती रहूँ…!
अविरल बहती तेरी ममता में,
हर उम्र-पड़ाव यूं ही सदा…
मैं पुष्पित और पल्लवित रहूँ…! ”
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