माँ तू देवी हैं
माँ तू देवी का स्वरूप है ,
मैं वंदता सदैव तुम्हे हूँ ,
तेरी चरणों में क्या है माँ ,
इसमें रहकर मैने यशस्वी लहया है।
लला, अबूझ तनय है तू ,
यों वृहत् अनजान है तू ,
मेरी चरणों में न चरी है कुछ ,
सब तेरी क्लांति का उपकार है लाल ।
तेरे हस्त में क्या इंद्रजाल है माँ ?
सर पर हस्त रखने कुल से ,
भुवन में प्रचलित गढ़ जाता हूँ ,
माँ तू जगत जननी है।
लाल, तू वृहत् निश्छल है ,
यह समग्र हमारा विधान है ,
ये उर्ध्व वालों का खेल है ,
हम तो बस हस्त कठपुतली है।
माँ तू त्रिदिव की जननी है ,
हमेशा पुण्य अर्जित करती ,
जिसने तुमसे खैरात माँगा है ,
वो ना जाता कभी रिक्त है।
लाल, तू वृहत् नासमझ है ,
यह समग्र हमारा कर्तव्य है ,
किसी को आश्रय सौंपने से ,
वक्त पर सम्प्राप्ति हमें आश्रय है।
नाम -उत्सव कुमार आर्या