माँ तुम मुझे…
माँ तुम मुझे…
बहुत याद आती हो,
आंखों में मेरे…
तुम नीर ले आती हो।
जब ससुराल में सासू माँ की डांट पड़ती है।
तवे पर आटे की रोटी ना जब गोल बनती है।
तब माँ वह…
रसोई की तेरी सीख याद आती है,
माँ तुम मुझे…
बहुत याद आती हो।
माँ तुम कहती थी…
दूसरों के घर जाना,
स्वादिष्ट भोजन बनाना सीख ले।
बड़ी हो गयी हो मेरे घर से ही,
जिम्मेदारी उठाना सीख ले।।
वहाँ पर बाबा का प्रेम ना तुझको बचायेगा।
कोई भी ना तुझको माँ जैसा समझायेगा।।
उन स्मृतियों में…
मुझे सीख दे जाती हो,
माँ तुम मुझे…
बहुत याद आती हो।
माँ तुम कहती थी…
ससुराल को हर लडक़ी का,
कार्य ही बस भाता है।
तभी वह लड़की को,
हृदय से परिपूर्ण अपनाता है।।
मेरी अल्हड़ता को सांझ सवेरे टोकना।
अपनी सुघड़ता को मेरे अंदर डालना।।
आज वह सब याद आता है ।
मुझको तेरी स्मृति दिलाता है।।
तुम उन सब …
स्मृतियों में बताती हो,
माँ तुम मुझे…
बहुत याद आती हो।
माँ तुम कहती थी…
स्वयं का कुछ नही होता है,
स्त्री का जीवन मे।
विशेष कर जब स्त्री हो,
पति के साथ सात वचन में।।
माँ तेरी घर की जब तक बिटिया थी।
सब के आंखों की प्यारी गुडिया थी।।
सहेलियों संग घुमा करती थी…
तेरे रसोई के काम ना करती थी…
शाम को बाबा को…
हर बात बताती थी
माँ तुम मुझे…
बहुत याद आती हो।
माँ तुम सही कहती थी…
अल्हड़ता बाबा के घर की स्वयं ही
चली जाती है।
कुशलता परिवार की जब लड़की को
आ जाती है।।
माँ तुम मुझे…
बहुत याद आती हो,
आंखों में मेरे…
तुम नीर ले आती हो।
ताज मोहम्मद
लखनऊ