“माँ तुम कैसी हो ?माँ के लिए खुशी अपार”
माँ तुम कैसी हो ?
माँ फूली नहीं समाई,
माँ बोली ..आ गया मेरा बेटा !
नहीं चाहिए माँ को पेठा(मिठाई),
चाहिए उसको अपना वो बेटा,
जो उसकी कल्पनाओं की हकीकत है,
जो जी नहीं पाई ..जो जीवन मे सार है,
आज उसे अपनी कृति पर ..नाज़ है,
आज उसे अपने संचित खज़ाने पर आश है
टूट गई वो आश उसकी,
रूठ गई वो ममता उसकी,
टूट गई वो कृति उसकी,
जब खाट मिली वृद्ध-आश्रम में उसकी,
कौन रवैया अपनाया सरकारों तुमने,
नहीं चाहिए …..पेंशन हमको,
शिक्षित और संस्कृत किया है पुत्र हमने,
उसको दो मुख की रोजी-रोटी दे दो,
नहीं चाहिए पेंशन हमको,
उसकी कर्मठता पर भरोसा है हमको,
बोल देगा …आते-जाते मुझको,
माँ कैसी हो ?
जीवन का हर सार है उसमें,
डॉ महेन्द्र सिंह खालेटिया,
माँ के चरणों में साभार प्रस्तुत,
दोस्तों इसे पुत्र और पुत्री दोनों को साथ लेकर
लिखना संभव नहीं था,अतः लड़की वर्ग बुरा न मानें, वो भी उसी माँ की रचना हैं, और बराबर की हकदार,