माँ तुम अनोखी हो
माँ मुझे इतना बताओं
तुम्हारे पास दुनियाँ की
वह कौन सी टेली-पेथी
वाली मशीन है ,
जो तुम्हारे पास वर्षों से थी
और दुनियाँ को इसकी
कोई खबर ही न चली।
माँ जब में बोली भी नहीं सकती थी ,
फिर भी तुम कैसे
मेरी हर बात समझ जाती थी।
मुझे भुख लग रहा है, या
लग रहा मुझे प्यास ,
तुम कैसे मेरे बिन बोले
यह बात समझ जाती थी।
मेरे शरीर के किन हिस्सों में
हो रहा है तकलीफ
मुझे दर्द हो रहा है या
कोई भी अन्य कारण हो,
तुम कैसे यह सब जान जाती थी।
मुझे जरा इतना बता दे,
तुम कैसे यह कर लेती थी।
चाहे तुम कितनी भी गहरी
नींद मैं क्यों न सोई हो।
चाहे तुम थक कर कितनी भी
चूर-चूर क्यों न हुई हो,
पर मेरी आँखे खोलते ही
तेरी आँखे भी कैसे खुल जाती थी।
तुम कैसे मुझे झट से
गोद मै लेकर बैठ जाती थी।
मेरे नींद न आने तक
तुम कैसे अपने नींद पर
विजय पाती थी।
वह कौन सी अलार्म थी,
जो तेरे दिल को मेरी धड़कन
के साथ जोड़ रखी थी।
आज जबकि मैं दुर देश में
रहने लगी हूँ,
फिर तुम वहाँ से कैसे माँ
मेरी हर हाल समझ जाती है
मै दर्द मे हूँ या खुशी मैं,
तुम कैसे जान जाती हैं।
मेरे हाल बताने से पहले
तेरा टेलीफोन मेरे हाल पुछने
कैसे चली आती हैं।
तेरा सबसे पहले यह पूछना
सब कुछ ठीक है ना
खुशी हो या हो गम
मुझे रूला देती है।
तुम्हारा दुसरा प्रश्न भी तो
कुछ इसी तरह का होता है
अभी खाई हो या न खाई हो
जब तक हाँ मै उतर न मिले
तेरा दिल वही पर अटका रहता है।
सच कहूँ तो आजतक माँ
मुझे तुम समझ मै न आई
जितना तेरे प्यार के सागर मै डूबी
डूबते चली गई ।
पर पता न चल पाया माँ
तेरे अंदर प्यार की
और कितनी बड़ी है खाई।
सच कहूँ माँ आज तक
कोई भी ऐसी मशीन ही न बनी
जो तेरी ममता को टक्कर दे सके
और नाप सके तेरे प्यार को।
माँ तुम अनोखी हो और
हमेशा तुम अनोखी ही रहोगी।
अनामिका