माँ तुम्हें सलाम हैं।
माँ तेरे प्यार को कैसे करूँ बयान,
और तेरे द्वारा किए गए
मुझ पर एहसानों का,
किस-किस चीजों का लू मैं नाम ।
कोई भला तेरे एहसानों का
मोल कैसे चुका सकता है।
जब तुम्हारे एहसानों की कोई,
गिनती ही नही कर सकता है।
माँ तुम कितना दुख सहकर
मुझें इस दुनिया में लाती हो,
इतनी अपार पीड़ा के बीच
मुझे देखकर तुम कैसे,
मुस्कुराने लगती हो।
कैसे अपनी ममता के सागर से
मुझे अपनी गोद में भर लेती हो,
अपना दर्द भुलाकर कैसे,
अपना प्यार हम पर लुटाने लगती हो।
अपने देह से अमृत पिलाकर,
तुम मुझे जीवन दान देती हो।
लगा मुझे सीने से तुम अपने,
जीवन का अनमोल सुख देती हो।
अपने संस्कारों से सींचकर,
तुम मुझे बड़ा करती हो।
जीवन का ज्ञान देकर,
प्रथम गुरू भी तो मेरा तुम ही बनती हो।
कोई मुझ पर उंगली न उठा सके,
इसलिए तुम सदा तत्पर रहती हो,
मैं कही भटक न जाँऊ,
इसलिए प्यार को छुपाकर
गुस्सा भी करती हो।
माँ तुम हर एक काम वह करती हो,
जो मुझे पहचान दिला सके,
और साथ ही साथ मुझे एक
अच्छा इंसान बना सके।
माँ तुमको मेरा सौ-सौ
बार सलाम है,
और तेरी ममता को मेरा ,
शत-शत बार प्रणाम है।
~अनामिका