माँ तुम्हारी गोद में।
है सकल संसार मेरा माँ तुम्हारी गोद में ,
तृप्ति का सागर छुपा है, माँ तुम्हारी गोद में।
घूम लूं मैं विश्व सारा या गगन में घूम आऊँ
या कि मैं संसार की सारी खुशी पा झूम जाऊँ,
किन्तु तेरी एक लोरी में मिला अहसास है जो
आज तक वो है बसा निज भाव बनकर बोध में,
है सकल संसार मेरा माँ तुम्हारी गोद में
तृप्ति का सागर छुपा है माँ तुम्हारी गोद में।
आज मैं संसार का सब ज्ञान चाहे सीख जाऊँ
ग्रन्थ पढ़ लूं वेद मंत्रो के सभी व्याख्यान पाऊँ
आज को मैं विद्वता में श्रेष्ठ बन जग को दिखाऊँ
माँ तुम्हारी सीख ही सम्बल बनी हर शोध में
है सकल संसार मेरा माँ तुम्हारी गोद में
तृप्ति का सागर छुपा है माँ तुम्हारी गोद में ।
माँ तुम्हीं सुख का खजाना, आज मैंने राज जाना
तुझको ही आधार जाना, माँ न मुझसे दूर जाना
खूबतर मिष्ठान लाऊं लाख व्यंजन आज पाऊँ
किन्तु कब वो स्वाद पाऊं
नेह अमृत धार तेरे हाथ के उस भोज में
है सकल संसार मेरा माँ तुम्हारी गोद में
तृप्ति का सागर छुपा है माँ तुम्हारी गोद में ।
रुग्णता से बन विचारा, जब कभी मैं बहुत हारा
माँ मिला तेरा सहारा, तूने हर गम से उबारा
जब कोई कांटा चुभा,आहत हुआ सा मैं व्यथित,
माँ तुम्हारी याद कर बस हो गया हूं मोद में
है सकल संसार मेरा माँ तुम्हारी गोद में
तृप्ति का सागर छुपा है माँ तुम्हारी गोद में ।
है नहीं इतनी समझ जो माँ तुम्हें कुछ जान पाऊँ
माँ तुम्हारे प्रेम की आखिर कहाँ तक थाह पाऊँ
आज है अहसास माँ कितना व्यथित मैंने किया था
किन्तु पल को भी कभी तुमने न अपने चित लिया था
प्रेम ही होता छुपा था माँ तुम्हारे क्रोध में ।
है सकल संसार मेरा माँ तुम्हारी गोद में
तृप्ति का सागर छुपा है माँ तुम्हारी गोद में ।