माँ घनाक्षरी
***********माँ (घनाक्षरी)*************
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गोदी माँ की झूल कर किया बाल्यकाल पार ।
तोतली बोली समझे माँ की शक्ति अपार ।।
सब को है खिला कर जूठा खाती फिर आप।
कभी कभी जो ना बचे भूखी सो जाती आप।।
सहती भू की भांति है जने – जने का आक्रोश।
मुख पे कभी ना आए तनिक सा भी क्रोध ।।
करूणामयी है मूर्ति ममता का है सागर ।
शीत सी शालीनता शक्ति का अवतार ।।
सहनशील का कुम्भ सहे सभी की लताड़ ।
भूधर सा धैर्य रखे नहींं किसी से साड़ ।।
सुखविन्द्र है पूजता है मातृशक्ति त्रका दास ।
हाथ जोड़ कर खड़ा .माँ का करे प्रकाश ।।
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)