माँ गौरी रूपेण संस्थिता
#दिनांक:-22/10/2023
#शीर्षक :-मॉं गौरी रूपेण संस्थिता।
माँ गौरी दुर्गुण नासिनी,
शम्भु वामांक सुशोभिनी,
तुम करती संसार ज्योतिर्मय,
दुष्ट दानव शुम्भ-निशुम्भ मर्दिनी।
मानव जब पशुवत हो जाए,
महिषासुर रूप बदलता जाए,
अधर्म के रास्ते माया का जाल फैलाये,
ना मानव ना पशु ही रह जाए।
महिषासुर मर्दिनि शूलचक्रधारिणी,
माया को पराजित करती,
महिमामंडितशालिनी।
सुख-समृद्धि-सौभाग्य की मंगलकामना,
सोलहों श्रृंगार कर माँ तेरी करूँ आराधना।
चुनरी चढ़ाकर, सिन्दूर लगाकर ,
सईया की गोद में सुहागन मरण की करूँ कामना ।
रूप सौन्दर्य सिद्धिदा सिद्धिदायिनी,
माँ गौरी रूपेण संस्थिता ,
सुख धान्य ऐश्वर्य प्रदायिनी |
रचना मौलिक,अप्रकाशित,स्वरचित और सर्वाधिकार सुरक्षित है।
प्रतिभा पाण्डेय “प्रति”
चेन्नई