माँ को पहला खत
आई जब
समझ थोड़ी
सोचा लिखूं
किसे खत पहला
मैं
गया था
एनसीसी
केम्प में
रह गयी थी
माँ
घर अकेली
लिखा यूँ
खत पहला
“मेरी प्यारी
माँ
पडूँ पैर
कर दंडवत
कहती थी तुम
मुझे आलसी
हूँ मैं
यहाँ उठता हूँ
भौंर सबेरे
दौड़ना भागना
चढ़ना पहाड़
फिर उतरना
सच माँ
आ गया है
मेहनत लगन और
देश सेवा का
जज़्बा मुझ में
समझ गया
बात तुम्हारी
घबराना मत
गिरना फिर उठना
चोट लगना
तकलीफ तो
चलती रहती है
जिन्दगी में
लेकिन आऊंगा
बहादुर बन कर ।*
– बेटा तुम्हारा ”
हो गया हूँ आज
साठ का
लेकिन रखा है
संजो कर
माँ का
पहला खत
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल