“माँ के बिना”
घर घर ही नहीं लगता वीरान लगता है माँ के बिना
सूना सूना लगता है सूनसान लगता है माँ के बिना
चकाचौंध घर में सारी फ़ीकी फ़ीकी सी लगती है
भरा होके भी खाली मकान लगता है माँ के बिना
घर का हर हिस्सा ज़िंदा रहता है ,जब माँ होती है
माँ न हो तो हर हिस्सा बेजान लगता है माँ के बिना
हर मन्नत पूरी होती माँ के क़दमों में जन्नत होती है
मुँह में जाता हर निवाला हराम लगता है माँ के बिना
माँ आसमां है कोई दमकता चाँद सितारों से भरा
बिन चाँद तारें आसमां गुमनाम लगता है माँ के बिना
ख़ुद फ़ाक़ा सह लेती है पर माँ घर खुशहाल रखती है
हर आमदनी हर उपहार बे मान लगता है माँ के बिना
क़दमों की आहट से पता चलता है, जब माँ आती है
जिस घर में माँ नहीं वो घर मसान लगता है माँ के बिना
___अजय “अग्यार