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8 May 2022 · 2 min read

*माँ के बराबर दूजा कोई नहीं है*

“माँ के बराबर कोई ना दूजा”
दुःख दर्द झेलते हुए इस जग में ,
चेहरों पे मुस्कान बिखेरे हुए ,
नैन अश्रु आँचल में छिपाते हुए ,
मन की बातों को भांप लेती है।
माँ के बराबर दूजा कोई नही है…! !
उलझते सवालों से जूझते कशमकश में ,
न जाने क्यों फिर भी उन सवालों के जवाब ढूंढ ही लेती है।
सुबह से रात तक इधर उधर ,
चक्करघिन्नी की तरह घूमती रहती है।
दिन के सारे काम निपटाकर ,
भूखे प्यासे रह रूखी सूखी खाके ,
बच्चों की मनपसंद फ़रमाइशें पूरी करती है।
माँ के बराबर दूजा कोई नहीं है…! !
दिन रात काम के धुन में जुट सुध बुध खो जाती ,
अपनी ख्वाहिशों को पूरा करने बच्चे बड़ो की सेवा में लीन हो जाती।
कितने भी गमों का बादल छाए हो ,
बच्चों की खातिर हँसकर बातों में टाल मटोल जाती है।
माँ के बराबर दूजा कोई नहीं है…! !
कभी कठोर तप कर ईश्वर आराधना करती ,
कभी डांट डपट कर चिड़चिड़ाती सी रहती ,
कभी रौद्र रूप बन गुस्सा दिखाती कभी सौम्य रूप बन लाड लड़ाती।
परीक्षा की घड़ी आने पर व्रत पूजा आराधना जप करती।
आँचल फैलाकर प्रार्थना है करती।
माँ की जगह ना कोई ले पाया है,
सहनशक्ति करूणा दया की नई पहचान बनाती है।
माँ के बराबर दूजा कोई नहीं है …! !
कभी गुस्से से लाल आँखे दिखाती,
कभी मौन धारण चुपचाप बैठे स्तब्ध रह जाती।
माँ के समान कोई न जगत में ,उनकी जगह कोई न ले सकता है।
माँ की ममता वात्सल्य करूणा मयी पुकार सुन देवता भी प्रगट हो जाते हैं।
सच्ची साथी बन सुख दुःख सहते हुए ,
सच्चे मन से गले लग प्रेम सुधा रस बरसाती है।
माँ के बराबर दूजा कोई नहीं है…!!
दुःख दर्द भूलकर सहनशील कोमल हृदय वाली बन जाती है।
कभी दुर्गा ,कभी काली माँ लक्ष्मी जी कभी सरस्वती बन जाती है।
सर्वज्ञ स्वरूपिणी सभी स्वरूपों में ,
माँ ,बेटी ,पत्नी ,बहू ,भगिनी विभिन्न रूप बन जाती है।
माँ के बराबर दूजा कोई नहीं है…! !
सच्ची सी भोली भाली सी ममतामयी मूरत ,
मिल जाए आँचल जब तेरा बच्चों को दुनिया जन्नत सी खूबसूरत नजर आती है।
शब्दो में बयां न कर सकते है ,
माँ के आशीष से बढ़कर कुछ भी नहीं है।
जिसे दोनों हाथों से आशीर्वाद मिल जाये उनकी तकदीर बदल जाती सँवर जाती है।
माँ के बराबर दूजा कोई नहीं है….! !
माँ की खुशी से घर महकता,
आँखे नम हो तो उदास हो जाता
माँ के चरणों में चारों धाम जन्नत जैसा स्वर्ग लगता
माँ कभी न रुकती कभी न थमती हरदम चलती रहती
संवेदना एहसासों से भर देती आँचल में पूरी दुनिया को समेट लेती है
शशिकला व्यास
स्वरचित मौलिक रचना

Language: Hindi
145 Views
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