माँ के नवरात्रे
“माता के नवरात्रे”
तरस गए रे मेरे नेैन,
माँ तुम कब आओगी।
अद्वितीय नजारे प्रकृति पुकारे,
राह ताके निष्ठा से सारे,
नवल वर्ष बिछाए नैन।
जौं के बीज खेत्री वास्ते,
देसी घी की बाती बनाएं,
माँ चरणों तेरे शीश झुकाएं,
शुद्ध मन से मैं मलिन बुद्धि,
भक्त हूं तेरा, दर्शन के लिए राह निहारु।
माँ मोहे जग में नहीं सुखचैन,
तरस गए रे मेरे नैन।
अहो! करण सुख मैंने पाया , माता के नवरात्रों का न्योता आया।
शंखनाद ध्वनि से,
मन अति हर्षाया।
माँ मंदिर भी मैंने सजाया,
हलवा पूरी भंगूर बनाया।
थाली, टीका, रौली, चुनरी, नारियल, कलश, आम के पत्तों का हार लगाया।
कंजकों को भी बुलाया।
पुष्प, सफेद और लाल रंग के, धोकर मैंने चढाये।
जग जननी, उजियारी, भवानी, कलयानी, महा गौरी, रूप तेरे सुहाये।
बन जायेंगे बिगड़े काम,
माँ के नवरात्रे चारों धाम,
जागरण करें सारी रैन,
अंतस खुशी से भर गए मेरे नैन।
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मौलिक रचना
अरुणा डोगरा शर्मा
मोहाली