माँ की वसीयत
खोलो जब मेरी वसीयत ह्रदय की आँखों से लेना बाँच,
तुम ही रहे हो मेरे जीवन के सवेरे और साँझ।
वसीयत में रखे पैसे नहीं हैं सिर्फ़ काग़ज़ के टुकड़े,
हैं ये तिनके जिन्हें जोड़ बनाए हमने प्रेम के घरौंदे।
जब देखो वसीयत में मिला घर आलीशान,
रख लेना माँ का मान ।
सत्य- प्रेम -आदर का रखना उसमें वास,
है बेटा तुमसे बस इतनी सी आस ।
न गिनना कभी भी घर की मंज़िलें ,
गिन लेना उनमें लगे थे जो मेले।
घर की नींव में भरा है तुम्हारे लिए अपार प्यार,
लेना भरपूर ,जब भी बेटा तुम कभी पड़ो अकेले।
है वास्तविक वसीयत में हीरे जवाहरात का होना ,
पर याद रखना तुम ही हो हमारा खरा सोना ।
नहीं रही चाहत कभी भी मिले मुझे करोड़ों का हीरा ,
तेरे हाथों के हार ने बनाया हमारा हर पल सुनहरा।
बड़े से घर में हमारे लिए छोटा सा इक कोना रखना,
जहाँ हर दिन मेरे संग हँसना जारी रखना।
बनाई है मैंने बंगले की खिड़कियाँ बहुत बड़ी,
ताकि प्रकृति व प्रभु से तुम्हारी कड़ी रहे जुड़ी।
खिंची है द्वार पर संस्कार रूपी लक्ष्मण रेखा ,
चलेगा ग़र तू संभल न खाएगा कभी धोखा।
अंत में लिखती है तेरी माँ बेटा ये नसीहत ,
प्यार को हमारे समझना सबसे बड़ी वसीयत।
इंदु नांदल , विश्व रिकॉर्ड होल्डर
इंडोनेशिया
स्वरचित