माँ की अभिलाषा
अभिलाषा (गजल)
मैं माँ की लिखावट हूँ सजता रहा हूँ दिल में।
अभिलाषा पूर्ण माँ की करता रहा हूँ दिल में।।
छोटा था अंक माँ की शैतानियां बहुत थीं,
फिर भी हर एक पल ही माँ के बसा हूँ दिल में।।
चलना सिखाया माँ ने अंगुली थमा थमाकर,
अभिलाषा बन के अक्सर घुटा रहा हूँ दिल में।।
ममता की छाँव पाकर जिसकी बडा़ हुआ हूँ,
हर एक तमन्ना उसकी तोडा़ किया हूँ दिल में।
मुंह का निवाला अपने जिसने सदा खिलाया,
यादें न उसकी बाकी अब रख रहा हूँ दिल में।
ऐ”आस” कैसे माँ का तू प्यार भूल बैठा,
अभिलाषा कितनी तुझसे बैठी लगाये दिल में।।
© कौशल कुमार पाण्डेय”आस”