माँ का श्राद्ध
लघुकथा
शीर्षक – माँ का श्राद्ध
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” सुनिए जी, आज अपने घर में क्या हो रहा है? बहू बेटा बड़े खुश दिख रहे l कुछ ब्राह्मण और मेहमान भी आये हैं l”
“तेरा श्राद्ध है आज भाग्यवान l देखा नहीं पंडित जी तेरी फोटो के सामने पूजा अर्चना कर रहे हैंl”
” हूं ऊं दिख तो रहा है l चलो आशिर्वाद दे दो अपने बेटे और बहू को l वो इतना कर रहे हैं तो हम आशीर्वाद तो दे ही सकते हैंl”
” नहीं बिलकुल नहीं भाग्यवान l मेरे जाने के बाद पल पल हर पल तुम्हें दुत्कारा गया, फटकारा गया l खाने के नाम पर बासी रोटियाँ, पहनने को फटे चिथड़े…. l सब कुछ देखा है मैंने ऊपर से.. पल पल रोया हूँ और तुम कहती हो आशिर्वाद… ”
” छोड़ो जाने दो, बच्चे है l अब हम दोनों साथ है और क्या चाहिये l मेरी बात आपने कभी नहीं टाली l आखिरी बार और मान लो… ”
” आज भी बहुत जिद्दी हो तुम l सिर्फ तुम्हारी खातिर…….- लेकिन भाग्यवान मैं अब दुबारा इन लोगों को नहीं देखना चाहता ,,, ”
” किसने कहा देखो,,,, बच्चे गलतिया करें तो करें,,, हम बुजुर्ग तो उनकी तरह नहीं हो सकते,,, चलकर आशीर्वाद दे दें ताकि उन्हें सद्बुद्धि आ जाये,,, आगे कोई गलती न करें …….
राघव दुबे
इटावा (उo प्रo)
8439401034