माँ का द्वार
मैं कब से खड़ा तेरे द्वार ,
माँ तुमको कुछ ना पता माँ ,
तेरे चरणों मे मेरा सारा संसार ,
तेरे दर्शन को मेरा दिल बेकरार ,
मै कब से खड़ा तेरे द्वार ,
माँ तेरी ममता हैं अपरम्पार ,
तू अपने बेटों को करती उद्धार ,
सबकी ग़लतियों को करती माफ माँ ,
मैं कब से खड़ा तेरे द्वार ,
तू सब जातियों पर करती दया ,
तुम है सबकी पालनकर्ता, प्यार ,
तुम सबकी साँस, जीने का आधार ,
मैं कब से खड़ा तेरे द्वार ,
तेरी दृष्टि से राक्षसों का संहार ,
तेरी महिमा से दुखों का होता नाश ,
तेरे दर्शन से भूत प्रेतात्माओ का नाश ,
मैं कब से खड़ा तेरे द्वार ,
कहीं वैष्णो तो कही काली होती ,
कही दुर्गा तो कही चंडीका, होती ,
कही सरस्वती,कही लक्ष्मी जानी जाती ,
मैं कब से खड़ा तेरे द्वार ,
तु दशहरा में नवदुर्गा से जानी जाती ,
तू माँ विश्व मे 108 रुपों से पूजी जाती ,
तुम विद्या की देवी, धन की लक्ष्मी, अन्नपूर्णा ,
मैं कब से खड़ा तेरे द्वार ,
तेरी क्रोधित दृष्टि से सर्वनाश होता ,
तुम मेरी आशा हो, निराशा, जगतजननी ,
तुम्हारे द्वार पे मेरी मनोकामना पुर्ण होती है ।
मैं कब से खड़ा तेरे द्वार ,
माँ तेरे दर्शन से मेरी दुनिया की अँधेरा मिटती है ,
कैसे करूँ मैं तेरा गुणगान माँ तेरे अनोखी महिमा की ,
मेरे मुक्ति का द्वार तेरे दृष्टि मे सारा संसार माँ ओ मेरी माँ ।