माँ का घर (नवगीत) मातृदिवस पर विशेष
माँ के घर न बजी
कभी भी
छद्म कुकर की सीटी ।
चूल्हे में
दुख को सुलगाकर
चढ़ा तवा करतब का ;
धर्म-गुँथे
आटे की रोटी
पेट भरा दे सब का ;
चढ़ा सत्य का अदन
प्रेम की
दाल उबाली मीठी ।
ममता भरी
गैस की टंकी
रही कभी न खाली ;
और सुलगती
करुणा मद्धिम
चूल्हे पर मतवाली ;
भाव-प्रवणता
की गुरसी पर
जली नेह-अंगीठी ।
पटा-बेलना
औ’ कैले पर
रोज़ नाचती रोटी ;
माँजन लगी
करैया भीतर
साग उबलती तीखी ;
टाठी में व्यवहारिक
करछुल
परसे करुणा मीठी ।
सींके पर
लटकाया जामन
रख माटी की हंडी ;
उठत भुंसराँ
दही बिलोए
लट छुटका रण-चंडी ;
कर्म-धर्म,ममता
की मूरत
कभी न पड़ती फीकी ।
माँ के घर न बजी
कभी भी
छद्म कुकर की सीटी ।
०००
—– ईश्वर दयाल गोस्वामी
नवगीतकार
छिरारी (रहली),सागर
मध्यप्रदेश-470227
मो.- 7000939929
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