माँ काल रात्रि
माँ दुर्गा सप्तम अवतार – देवी कालरात्रि
विधा – दोहा-छंद
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कालरात्रि माँ सातवाँ, दुर्गा का अवतार I
हे माँ ! त्रिनेत्र धारिणी, नमन तुम्हें सौ बार I1I
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रोद्री, चंडी, भैरवी, दुर्गा रूप अनेक I
चामुण्डा, काली सहित, नाम पार्वती एक I2I
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दिवस सप्तमी पूजकर, खुलें सिद्धि के द्वार I
देवी कालरात्रि करें, भवसागर को पार I3I
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देवी काले रंग की, बिखरे सिर पर बाल I
एक नजर भर देखकर, होते दैत्य निढाल I4 I
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चमकीली माला गले, देवी गधे सवार I
एक हाथ काँटा लिए, दूजे लिए कटार I5I
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वर मुद्रा में तीसरा, देवी का है हाथ I
मुद्रा चौथे की अभय, भक्त-हेतु अधिनाथ I6I
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गुड का भोग लगाइए, हर पूजन के बाद I
देवी के आशीष से, सद्बुद्धियाँ आबाद I7I
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भक्तो हेतु कृपालु माँ, सर्वशक्ति संपन्न I
मधु कैटभ को मारकर, देवों किया प्रसन्न I8I
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देवी शुभ फल-दायनी, प्राप्त करें आशीष I
पूरे श्रद्धा भाव से, भक्त झुकाएं शीश I9I
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राक्षस भूत पिशाचगण, त्रसित-दुखी भयभीत I
साधु सन्त को मानती, माँ अपना प्रिय मीत I10I
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विनय कुमार अवस्थी