माँ (कविता)
माँ तेरी वो थपकी लोरी , भूल नहीं क्यों पाती है ।
बचपन वाली प्यारी बोली,याद मुझे फिर आती है।।
मेरा बेटा राजा बेटा ,कहकर मुझे बुलाती थी।
मुझको सूखा बिस्तर देती,गीले में सो जाती थी ।।
जब जब मेरी नींद खुली, माँ को जगता पाता था।
हर क्षण तूने प्यार दिया ,कितना तुम्हें सताता था ।।
कितने मेरे नख़रे थे , सर में सहज उठाती थीं ।
चोट लगी गिर जाने से ,आँसू ख़ुद टपकाती थीं ।।
पर कितना बदकिस्मत हूँ ,माँ का साया छूट गया।
सच कहता है दोस्त’प्रखर’,अंदर से जो टूट गया ।।
कितने क़िस्मत वाले हैं वो,माता जिनके पास में है ।
चरणों में जन्नत होती है ,ख़ुद मेरे अहसास में है।।
चरण वंदना प्रस्तुत माँ को,सहज जगत् संसार करूँ।
बार बार माँ के दर्शन हो ,कष्टों का संहार करूँ ।।
-सत्येंद्र पटेल’प्रखर’