माँ ( कविता )
कंण्ठ स्वर का प्रथम आगाज़
जिसके गर्भ मे पाया मैंनें खुद का अस्त्तिव
जिसके स्वास से धड़कनों को मिली गति
हाँ वही हैं माँ…..
जिसने नौ महिने अपनी वेदना से सीचां मुझे
रक्त-धमनियों से प्रवाह हुई
मेरे हिस्से की ऊर्जा
जिसने कष्टों का किया वरण
और लाई मुझे इस जगत मे
हाँ वही हैं माँ….
जिसकी कोई परिभाषा नहीं
जो हमारे जीवन का हैं परिचय
वही हैं माँ…।
स्निग्धा रुद्रा,धनबाद,झारखंड