माँ और हम
माँ वो होती हैं जो जन्म देती हैं,
उंगली पकड़ हमारी पग -पग चलना सिखलाती हैं।
अपनी गोद में बैठकर प्यार भरा निवाला खिलाती है ।
हमारी आँखों में आँसू देख, खुद रोने लगे जाती है ।
गर ठोकर खाकर गिर जाए तो हौसले हमारे बढ़ती है ।
हमारी लड़खड़ाती जुबाँ , बिन कहे समझ जाती है ।
अपने से पहले हमारी थाल सजाती है ।
जब काम से थक कर वापिस आते हैं, तो वहीं सब ठीक होने का दिलासा देती हैं।
माँ ऐसी ही होती हैं……
पर क्या हम एक पल भी सोचते है ,
जो हमें उंगली पकड़ कर चलना सिखाती है ,
वहीं बुढ़ापे में हमारी उंगली पकड़ कर चलना चाहती हैं ,
और हम है कि बस अपनी ही धुन में रहते है ,
जो हमें याद रखती है पल -पल,
सुनती हमारे दिनभर के किस्से कहानियाँ ।
क्या नहीं निकाल सकते हम सब,
बस कुछ पल अपनी ज़िंदगी के उनके लिए ।
क्या इसके लिए चाहिए ‘मोदर्स दे’ ।
हर दिन तो होता है माँ का ।
आज अभी से सब से प्रण लो,
अपनी माँ को रोज समय दो ,
जितना उन्होंने दिया हमें हैं,
उसका एक अंश ही तुम बदले में दे पाओगें,
ज़िंदगी की राह में सर्वोच्च शीर्ष को छू पाओगे ।
गर माँ का साथ होगा बच्चे ,
जीवन में कभी न तन्हा होंगे ।
मीनू यादव