माँ और बीवी
खामोश खड़ा हूँ,
कोई बोल नहीं हैं,
इधर माँ, उधर बीवी है
कोई और नहीं है,
जनता हूँ,
इन रिश्तों का,
कोई मोल नहीं है,
चाहती है दोनों मुझे,
बात कोई और नहीं है,
है चिंता,
दोनों को मेरी,
पर सोच में फर्क है,
दोनों के बीच में,
एक पीढ़ी का अंतर है,
दोनों रिश्ते हैं
अनमोल,
ये समझाऊ कैसे,
दोनों का बड़ा रोल है,
ये बताऊँ कैसे?
एक को मनाऊ तो,
दुजी रूट जाती है,
कह के मुझको पराया,
माँ भी मुँह फूलती है,
” तुम तो बस कुछ बोलो नहीं,”
यू कह,
बीवी भी चीड़ जाती है,
इन दोनों को मनाते – मनाते,
मेरी जान निकलती है,
काश! ये दोनों,
मेरे अंतर द्वन्द्वो को भी समझती,
रिश्तों के चक्रव्यूह में,
मुझ को यू ना झकड़ती ।
Uma vaishnav
मौलिक और स्वरचित