माँ,एक व्याख्या सुनिए
माँ के असीम प्यार से बढ़कर दुनिया में कोई बड़ा नहीं होता
और जिसकी माँ हो उसके सामने कोई संकट खड़ा नहीं होता
माँ का आँचल, जैसे निर्मल, गंगा का बहता पावन जल
माँ का प्यार, जैसे उपहार, प्रकृति से मिला हो मौसम बसंत बहार
माँ का रूप, जैसे स्वरूप, सर्दी में गुनगुनाती मनभावन धूप
माँ का आशीर्वाद, जैसे निर्विवाद, जिस से मनुष्य में आता सकारात्मक साधूवाद
माँ की ममता, जैसे समता, कोमल भावनाओं की सुखद नरमता
माँ का मन,जैसे चंदन, माथे पर लगा हो तिलक का वंदन
माँ का पालन, जैसे संचालन, ये धरती करती है हम सब का लालन
माँ का बलिदान, जैसे अभियान, देश को समर्पित जीवन का योगदान
माँ की सेवा, जैसे मेवा, ईश्वर को चढ़ता हो पवित्र कलेवा
माँ का गुणगान, जैसे यशोगान, तीनों लोकों में गुंजित है जिसका मान
माँ का स्पर्श, जैसे हर्ष, जीवन में भरता है जो एक नया उत्कर्ष
माँ की दीक्षा, जैसे शिक्षा, भूखे को मिल गयी हो भरपेट भीक्षा
माँ की प्यास, जैसे उपवास, जिसमें टूटती नहीं अगाथ प्रेम की आस
माँ का ज्ञान ,जैसे विज्ञान, मिटा देती अंतश के तिमिर का अज्ञान
माँ की भाषा, जैसे परिभाषा, पूर्ण करती मन की प्रत्येक अभिलाषा
माँ की छाँव, जैसे गाँव, जहाँ धूप में भी नहीं जलते हो पाँव
माँ का चेहरा, जैसे सेहरा, सुन्दरता पर लगा हो जिम्मेदारियों का पहरा
माँ की मुस्कान, जैसे सुल्तान, मात देती हर कठिन से कठिन इम्तिहान
माँ का साथ, जैसे नाथ,पकड़ा हो स्वयं देवता ने आपका हाथ
माँ की भक्ति, जैसे अभिव्यक्ति, सांसारिक मोह माया से उनमुक्त मुक्ति
पूर्णतः मौलिक स्वरचित रचना
डॉ.आदित्य कुमार भारती
टेंगनमाड़ा, बिलासपुर, छग.