माँँ ने कभी न हिम्मत हारी
माँ ने कभी न हिम्मत हारी।
बस कुछ न कुछ करते धरते
कदमों को न देखा थकते
पौ फटने से साँझ ढले तक
बस देखा है उम्र बदलते
हर दम देखी काम खुमारी।
माँ ने कभी न……..
झाड़ू चौका चूल्हा चक्की
समय साधने में वह पक्की
नहीं पड़ी कोई क्या कहता
सोच लिया तो करना नक्की
पीछे रहती घड़ी बिचारी।
माँ ने कभी न……..
कपड़े धोना, सीना-पोना
दूध जमाना, छाछ बिलोना
साफ-सफाई की बीमारी
धोना घर का कोना-कोना
समय पूर्व करती तैयारी।
माँ ने कभी न……..
सही समय पर हमें उठाना
नहीं उठें तो आँख दिखाना
घुटी पिलाना संस्कारों की
पर्व त्योहारों को समझाना
घर भर है उसका बलिहारी।
माँँ ने कभी न………
पास-पड़ौस समाज सभी का
ध्यान रहे हर काम सभी का
हर खुशियों गम में शरीक हो
हाथ बँटाती सदा सभी का
बस ऐसे ही उम्र गुजारी।
माँ ने कभी न……..
बहिना की जब हुई सगाई
खुशियों से फूली न समाई
दौड़-दौड़ दुगुनी हिम्मत से
पल में उसकी करी बिदाई
फिर टूटी पर उफ न पुकारी।
माँ ने कभी न……..
पापा के कंधे से मिल कर
हाथ बँटाया हँस मिलजुल कर
कभी पता ना चला समय का
बड़े हो गये हम कब पल कर
समझ गये माँ की खुददारी।
माँ ने कभी न……..
आई बहू न कुछ भी बदला
कहती धी ने चोला बदला
मेरे घर हैं कौन कुटुम्बी
ईन-मीन चारों का खटला
कहती घर गूँजे किलकारी
माँ ने कभी न……..
सौभाग्य कहा और मिली बधाई
कहते सब हैं लक्ष्मी आई
मैंने सुख पाया माँ है खुश
मुझको तो माँ जैसी पाई
अब सुख पाएगी महतारी।
माँ ने कभी न……..
माँँ ने कभी न हिम्मत हारी।।