महफ़िल में
ग़ज़ल
महफ़िल में
2122 1212 22
सबको है अस्सलाम महफ़िल में।
सबको है राम राम महफ़िल में।।
दिल ने लिक्खी है प्रेम गाथा जो।
पेश कर दूँ कलाम महफ़िल में।।
झूठ को झूठ सच को सच कह दो।
रहने दो साम दाम महफ़िल में।।
मुँह पे ता’रीफ पीठ पे खंज़र।
काम से रक्खो काम महफ़िल में।।
मेरा चेहरा हुआ गुलाबी सा।
आया जो तेरा नाम महफ़िल में।।
आमने सामने हों गर हम तुम।
उम्र गुज़रे तमाम महफ़िल में।।
हो रहा कौन महिमा मंडित अब।
खूब है ताम झाम महफ़िल में।।
कैसे उसने लिया था वो तमगा।
ये खबर भी है आम महफ़िल में।।
वाहवाही तो मिलती है लेकिन ।
होती नींदें हराम महफ़िल में।।
ज्योति बातें करो न यूँ कड़वी।
दो ज़बाँ को लगाम महफ़िल में।।
✍🏻श्रीमती ज्योति श्रीवास्तव