महेश भी
देखते ही देखते ये जीवन बदल गया,
और बदला है मम राष्ट्र परिवेश भीI
कोई चीर से विहीन करता सरस्वती को,
कोई खींचने लगा है जननी के केश भीI
आँधियाँ चली हैं द्रोह की समग्र विश्व आज,
घोर तम से घिरे हैं देख लो दिनेश भीI
शक्तिहीन से लगें सनातनी समस्त देव,
और अपशब्द झेलते हुए महेश भीII
रचनाकार
डॉ आशुतोष वाजपेयी
ज्योतिषाचार्य
लखनऊ