महीना आयौ सावन कौ
लोकगीत
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* महीना आयौ सावन कौ *
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झूला आँगन में डरवाय दै भरतार,
महीना आयौ सावन कौ ।
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आसमान में घिरी बदरिया उमड़-घुमड़ कै कारी ,
भीनी-भीनी झरैं फुहारें कोयल कूकै डारी ,
बाजै पामन में पायलिया घुँघरूदार ।
महीना आयौ सावन कौ ।।1
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मन में उठैं उमंग चले सीरी-सीरी पुरवैया ,
याद बहौत आवै पीहर की सुन ननदी के भैया ,
मोकूँ ला दै रे चुनरिया गोटेदार ।
महीना आयौ सावन कौ ।।2
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कर सोलह शृंगार बलम मैं झूला पै झूलुंगी ,
हौले-हौले झोटा दीजो सुध अपनी भूलुंगी ,
तगड़ी पहरुंगी सोने की ठप्पेदार ।
महीना आयौ सावन कौ ।।3
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बिंदिया दमकै काजर चमकै हाथन मेंहदी महकै ,
कँगना खनकै रे बाँहन में पाँव महावर चहकै,
आ जा झूलिंगे गलबहियां दोऊ डार ।
महीना आयौ सावन कौ ।।4
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महेश जैन ‘ज्योति’,
मथुरा ।
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