” महिलाओं वाला सावन “
वैसे तो सावन का त्यौहार हमारे भारतवर्ष के हर कोने में बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है। नर हो चाहे नारी हर कोई भगवान शिव की आराधना में लीन रहता है। यही सावन बारिश के आगमन का सूत्रधार होता है। इसकी रौनक भक्ति और रस में मिलकर काफी रोचक हो जाती है।
शिव भक्त सावन माह में पवित्र हरिद्वार से कावड़ लाते हैं तथा बम बम भोले के नारों से सारा वातावरण आध्यात्म का केंद्र बन जाता है। शिव भक्त शिव भजनों के साथ भांग का सेवन कर अपने देवता भोले बाबा को रिझाते हैं। हरिद्वार से लाई हुई कावड़ भक्त अपने ग्रह क्षेत्र में आकर शिव मंदिर में अर्पित करते हैं।
अपने बचपन में तो सावन का अलग ही आनंद आता था। रस्सी को पेड़ से बांधकर उसमें लकड़ी की फट्टी लगाकर झूला बनाकर खूब झूलते थे। गांव में इस झूले को पींग बोला जाता है। लाल रंग के छोटे छोटे जानवर घूमते थे, जिनको हम तीज कहकर पुकारते थे। एक अलग सा वहम भी बच्चों दिमाक में रहता था कि सबसे पहले पींग पर तीज को झुलाएंगे नहीं तो रस्सी टूट जाएगी।
सावन के माह में तीज त्यौहार पर सारी काकी ताई चूल्हे पर गुलगुले और सुहाली बनाती थी। घर के सारे बच्चे चूल्हे के पास बैठकर ही खाते रहते थे। आज के इस वैज्ञानिक युग में वो वाली चहल पहल तो नहीं रही फिर भी महिलाओं के लिए सावन का अलग ही महत्व होता है।
पूरे वर्ष महिलाएं सावन माह के आगमन का इंतजार करती हैं। ज्यादातर महिलाएं सावन के सोमवार का व्रत रखती हैं। पहले तो नई नवेली दुल्हन को शादी के बाद पहले सावन में अपने मायके में रहने का रिवाज था, जो अब धीरे धीरे विलुप्त हो रहा है। उस समय नव विवाहित जोड़े को बिछुड़न में संगी साथी खूब चिड़ाते थे।
इसी माह में सिंधारा पर्व मनाया जाता है। इस त्यौहार पर लड़की के मायके से नए कपड़े, मिठाई आदि का शगुन भेजा जाता है। सावन के त्यौहार की महिलाओं के चेहरे पर अलग ही ताजगी देखी जा सकती है। सभी अपना अपना रूप संवार कर ऐसी नजर आती हैं मानो प्रकृति श्रृंगार करके सावन का इंतजार कर रही हो।
सावन में झूला झूलते समय सखियां पिया का नाम लेकर नई नवेली दुल्हन को खूब रिझाती हैं। पिया का नाम सुनकर नई नवेली का शर्माना भी गजब ढाता है। शर्म के मारे गुलाबी हुई गालों को देखकर ऐसे लगता है जैसे औंस की बूंदे चमक रही हों। इस समय उनका मुस्कुराना प्रकृति पर भी कहर ढाता है।
सावन की बारिश में प्रकृति का भी अपना अलग ही अंदाज और दुर्लभ नजारा होता है। घुटे हुए काले बादलों से टिप टिप कर बारिश की बूंदे धरा पर उतरती हैं तो हर किसी का मन रोमांचित हो उठता है। लहरिए पहनकर महिलाएं सावन के गीत गाती हैं। इस समय घेवर खाने का भी अपना अलग ही मजा होता होता है।
जीव जंतुओं के साथ साथ बच्चों के मन को भी सावन बहुत लुभाता है। बारिश की बूंदे गिरते ही बच्चे चिड़ियों की तरह फुदकना शुरू कर देते हैं। सभी कागज की नाव बनाकर पानी में चलाते हैं। इकट्ठे हुए बारिश के पानी में बच्चों का छप छप करना बहुत आनंदित करता है।
इसी माह में रक्षाबंधन का त्यौहार भी आता है। बहनें अपने भाइयों की कलाई पर राखी बांधती हैं तथा उपहार लेने की जिद्द करती हैं। चारों तरफ़ अलग ही चहल पहल का वातावरण होता है। सब खुशी से मदमस्त होकर घूमते हैं। महिलाओं और बच्चों के लिए सावन का अपना अलग ही महत्व है।