महादेवी वर्मा जी की वेदना
मै नीर भरी दुख की बदली,
अब मै क्या भू पर बरसुंगी ?
शुष्क हो गया है जीवन मेरा,
जीवन भर मैं अब तरसुंगी।।
इच्छाएं मेरी अनेक अनंत थी,
उनका मैंने अब त्याग किया।
इच्छाएं ही दुख की कारण थी,
उनका नहीं मैंने स्मरण किया।।
साथी मेरा अब चला गया,
उसका शोक अब क्या करना।
जीवन की बची है पगडंडियां,
उन पर चल जीवन पूरा करना।।
भू की न प्यास बुझा पाई,
उसको भी मै न कुछ दे पाई।
प्रयत्न किए थे बहुत कुछ मैंने,
पर अंत समय तक न दे पाई।।
जा रही हूं मैं स्वर्ग लोक को,
शायद वापिस न आ पाऊंगी।
कोई गम न करे अब मेरा,
मै आंसू पीकर रह जाऊंगि।।
मै देवी न थी महादेवी थी,
फिर भी मैं कुछ न कर पाई।
हिंदी भाषा को और बढ़ाना था
उसको और अधिक न बढ़ा पाई।।
आर के रस्तोगी गुरुग्राम