महा श्रृंगार छंद, कैकयी राम संवाद
महाश्रृंगार छंद 16 मात्राएँ
आदि में त्रिकल द्विकल
अंत में द्विकल त्रिकल।
गुरू लघु होना चाहिए।
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कैकेई राम संवाद
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तिलक की सोच रहे मह राज,
अवध को बहुत खुशी की बात।
तुम्हारे सिर पर देखूँ ताज,
परम पुलकित हों मेरे गात ।
मगर पितु पता नहीं यह चूक,
रहे कर किस सपने में झूल ।
मुकुट तो नहीं हमारे पास,
गये पिछली बातों को भूल।।
हुई बाली से भारी जंग,
जंग में खास शर्त अनुसार।
करे अपनी रानी को भेंट,
युद्ध में जिसकी होगी हार।
रखा था एक विशेष विकल्प,
देत रानी मन में हो सोच।
शीश का देगा मुकुट उतार,
कथन में करे नहीं कुछ लोच ।
गये राजा बाली से हार,
दाव पर मुझे लगाकर राम।
मुकुट निज दिया उसे हैं सौंप,
लौट आ गये अयोध्या धाम।
कहा था मैंने फिर कपिराज,
आज तो हुई बराबर हार ।
किसी दिन मेरा बेटा आन ।
मुकुट ले जाय तुझे ललकार।
देख कर अवधनाथ ऐलान,
रहा मन भीतर भीतर रोय ।
घोषणा करी भरे दरबार,
मुकुट बिन तिलक कहाँ से होय ।
कौन है जो आकर समझाय,
तिलक का पीछे करना काज।
मुकुट बाली को पहले जीत,
अवध में बुलवा लो महराज।
राम तू लायक है हर भाँति,
राम तू रघुवंशन की शान ।
राम तू एक अवध आधार,
राम तू चक्रवती की आन
राम तू सूर्यवंश का मान ।
प्रान तू दशरथ जी के राम।
पड़ी जो नृप की गिरवी शाख,
उसे वापस ला नीके राम।
अभी जा वन बाली के पास,
छोड़ दे धन वैभव आराम।
जीतकर पंपापुर का राज,
मुकुट ला वापस बेटा राम ।
भरोसा मुझको है भरपूर,
नहीं तेरे सम कोई अन्य।
तिलक तेरा आँखों से देख,
तभी मानूँगी जीवन धन्य।
मातु कहना तो है सब ठीक,
मगर वन जाना कैसे होय ।
मुकुट लाने मैं हूँ तैयार,
मरम इसका ना जाने कोय।
ठोस कारण भी हो तत्काल,
भले सुन सब रह जायें दंग ।
रचो कुछ ऐसा आप उपाय,
पड़े तो पड़े रंग में भंग।
मानकर कैकेई की बात,
राम जी पहुँचे हैं वनवास।
जीत बाली रावण का राज,
दिया है धरती को उल्लास ।
धर्म की है अधर्म पर जीत,
सत्य की है ये जै जै कार ।
दिये जल रहे करे तम नाश,
दिवाली का है यह त्यौहार।।
गुरू सक्सेना
नरसिंहपुर मध्यप्रदेश
26/10/22