महावटें (गीत )
महावटें (गीत )
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सर्दियों में आ गईं लो बारिशों की आहटें
(1)
फूँकने ज्यों प्राण ,जाती सर्दियों में आ गईं
सब मजा सुखचैन यह बूँदें निगोड़ी खा गईं
दुबका हुआ आवागमन ,देख-देख महावटें
सर्दियों में आ गईं लो बारिशों की आहटें
(2)
ठंड में गीले पड़े कपड़े न सूखेंगे अभी
बूँद जाड़ों की नहीं भाई किसी के मन कभी
राम जाने किस तरह भयभीत दिन-रातें कटें
सर्दियों में आ गईं लो बारिशों की आहटें
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रचयिता : रवि प्रकाश, बाजार सर्राफा
रामपुर (उ.प्र.) मो. 9997615451